ज़माने भर के दुश्मन हमदर्दियां जताने लगे
गले लगाया भी तो छूरिया चलाने लगे
जिनको हमने बचपन में चलना सिखाया था
हम ठोकर क्या खाए , चलना सिखाने लगे
गड्ढे खोदने की औकात नहीं है जिनकी इस जहां में
वो कम्बख़्त भी दरिया बनाने लगे
अच्छे दिनों में जो ऊंचे ख़्वाब दिखाते थे
दिन गिरे मेरे तो कमियां गिनाने लगे
उनके ऊंचे अल्फ़ाज़ से परिंद तक हिले नहीं
मैंने जुबां खोल दी सब उत्पात मचाने लगे
अब क्या बताएं की किस तरह से तन्हा हैं हम
जिन लोगों से लिपटते थे वे लोग ही सताने लगे
हम जिसे अपना समझकर खूब इतराते रहे
वो हमारे दरमियां की दूरियां बताने लगे
मां की गोद में महफूज़ हूं तुम फ़िक्र मत करना
ज़िक़्र किया उनसे तो वे प्यार जताने लगे
मेरी मौत हुई, मय्यत उठी, जनाजा निकला
वे जो अज़ीज़ थे, मेरे जिस्म को जलाने लगे
तुम्हारी नवाबी का क्या ख़ौफ है "अवनीश"
तुम चले तो जलने वाले भी कुर्सियां हटाने लगे