शनिवार, 13 अक्तूबर 2018

हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया पागल भईल बा दुनिया रे ( भोजपुरी लोकगीत ) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:11 am with No comments

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हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे

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आज के यहि समइया में भइया
लोक - लज्जा खतम होय गा
पहले रहले सब माई औ बाबू
अब तो सब कुछ सनम होय गा - 2
लौंडे भी पहले माई रटत रहले अब तो रटेले सजनियाँ रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे

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मिनी स्कर्ट के जमाना है आइल
कपड़ा सबकै कसल होय गा
देशी केहू के मनवा न भावै
विदेशी कपड़वक नसल होय गा -2
घर परिवार कै नकवा कटावै , होय ई केहकर बबुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे

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इनही के चक्कर मा ये मोरे भइया
अवनिशवा बेचारा खराब होय गा
(सिंगर) रोवत है ये मोरे भइया
दूनौं के ज़िनगी शराब होय गा -2
अब तौ बतावा ये मोरी सजनी कैसी कटी मोर जवनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे

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अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)
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सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:45 am with No comments

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मैं जिसे प्यार करता था वो किसी और से प्यार करती थी
हम जिसे दिल में रखते थे वो औरो की बाहों में रहती थी
पता नहीं क्या सोंचती थी वो हमारे बारें में ,
जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी |

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नजरें चार करने से मेरी धड़कन नहीं काबू में
ऐसा लगता है कि मुझसे प्यार करती थी
वो एकटक देखना , हँसना , शरमाना ,
लगता था कि जैसे प्यार का इकरार करती थी

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तुझसे प्यार करने की न चाहत है अब मुझमें
वो क्या वक्त थे जब आँखें सौ बार लड़ती थी
अवनीश था जब तुम्हारे प्यार में पागल ,
आँखें तुम्हारी बेवफा औरों से मिलती थी |

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जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:44 am with No comments

मैं जिसे प्यार करता था वो किसी और से प्यार करती थी
हम जिसे दिल में रखते थे वो औरो की बाहों में रहती थी
पता नहीं क्या सोंचती थी वो हमारे बारें में
जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी |

नजरें चार करने से मेरी धड़कन नहीं काबू में
ऐसा लगता है कि मुझसे प्यार करती थी
वो एकटक देखना , हँसना , शरमाना
लगता था कि जैसे प्यार का इकरार करती थी

जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:44 am with No comments

मैं जिसे प्यार करता था वो किसी और से प्यार करती थी
हम जिसे दिल में रखते थे वो औरो की बाहों में रहती थी
पता नहीं क्या सोंचती थी वो हमारे बारें में
जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी |

नजरें चार करने से मेरी धड़कन नहीं काबू में
ऐसा लगता है कि मुझसे प्यार करती थी
वो एकटक देखना , हँसना , शरमाना
लगता था कि जैसे प्यार का इकरार करती थी

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

ज़िन्दगी ने हमें इस कदर रुलाया है (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:10 am with No comments

ज़िन्दगी ने हमें इस कदर रुलाया है
जब - जब ग़म दिया तब - तब भुलाया है
ज़िन्दगी आज हमसे हुई बेवफा है
मौत के नींद में आज हमको सुलाया है |

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हम तो अकेले भी जी लेते
उसने ही हमारे दिल को उकसाया था
और आज , आज वही कहती है
कि तेरे पास कौन आया था ||

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फिर भी हम दर्द सहकर जी लेते
गर उसने हमें फिर बुलाया न होता
सारे शिकवे मिटा देते उनके लिए
अवनीश को अपने आशिक से इस कदर पिटवाया न होता ||