मंगलवार, 22 मई 2018

चप्पल खाने के बाद भी खड़े रहते हैं (हास्य शायरी) अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 2:39 am with No comments

कोई जुल्फों से दिल को लुभाती है
कोई आँखों से गोली चलाती है
बराबर खर्च चलता रहे
इसलिए लड़कियाँ लड़कों को फंसाती हैं

हम तो कुत्ता हुए इनके प्यार में
इक चुम्मा था माँगा उधार में
वो धीरे से मेरे पास आयी
और और क्या इक चाँटा लगा दिया गाल में

दिल लगायें तो साला टूट जाता है
शरीर बेचारा लूट जाता है
बड़ा टेन्शन है इश्क में यारों
फंसे तो आशिक बेचारा कूट जाता है

पता नहीं क्यों लोग इश्क में पड़े रहते हैं
दिल टूटता है तो मयखाने में पड़े रहते हैं
अवनीश तो दिलवाले हैं यारों
चप्पल खाने के बाद भी खड़े रहते हैं

शनिवार, 19 मई 2018

हम अंजान थे नजरों से उनके (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 12:42 am with No comments

हम अंजान थे नजरों से उनके  
उनकी नजरें हमें गिराना चाहती थीं
जिन्हें समझा था कि गिरेंगे तो उठायेंगें
वही ताकते हमें मिटाना चाहती थीं

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हम सम्भले तो वे मात खा गये
जिन्होंने हमें गिराने का ख्वाब देखा था
हम संभले तो उनका गुरूर टूटा
जिन्होंने हमें मिटाने का ख्वाब देखा था

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हमसफर बनकर रह सकते थे मगर
उन्हें खुद पर बड़ा गुरूर था
वे अवनीश को नहीं चाहती थी तो
इसमें उनका क्या कुसूर था

सोमवार, 7 मई 2018

आँखें ही आँखों से दूर हो गई (शायरी)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:44 pm with No comments

आँखें भरी हमारी थी
वो खूब हँस रहे थे
बेशर्म है बेचारा
कह तंज कस रहे थे
यकीन न था वो वो ही थी
जिसके लिए ये नयन बह रहे थे

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जिनके लिए जिया था
वो दूर हो गई
मेरी लाचार आँखें
मजबूर हो गई
कभी आँखों से बातें हुआ करती थी
आज आँखें ही आँखों से दूर हो गई

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टूटकर बिखर गई
ख्वाब जो हमारे थे
आँसू भी बिखर गई
जिसे प्यार से संभाले थे
ये अवनीश थे जो संभल गये
अच्छे - अच्छे ठेके के सहारे थे