हम अंजान थे नजरों से उनके
उनकी नजरें हमें गिराना चाहती थीं
जिन्हें समझा था कि गिरेंगे तो उठायेंगें
वही ताकते हमें मिटाना चाहती थीं
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हम सम्भले तो वे मात खा गये
जिन्होंने हमें गिराने का ख्वाब देखा था
हम संभले तो उनका गुरूर टूटा
जिन्होंने हमें मिटाने का ख्वाब देखा था
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हमसफर बनकर रह सकते थे मगर
उन्हें खुद पर बड़ा गुरूर था
वे अवनीश को नहीं चाहती थी तो
इसमें उनका क्या कुसूर था
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