सोमवार, 31 दिसंबर 2018

कुछ ऐसे जी रहा हूँ , जैसे राधा बिन श्याम हैं (दर्द भरी शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा लेखक , कवि

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:28 am with No comments

काहे की खुशी
जब हमारी जिंदगी ही गुमनाम है ,
कुछ ऐसे जी रहा हूँ ,
जैसे राधा बिन श्याम हैं |

न हम प्रेम की गलियों में बदनाम हैं
न राधा और श्याम हैं ,
हम तो इक सताये हुए हैं ,
हमारा तो प्यार भी गुमनाम है |

पता नहीं वो डरती थी या मैं डरता था
वो प्यार करती थी या नहीं,
पर अवनीश प्यार करता था |

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

उगे , आपके जो सर पे न बाल हो , मेरे प्यारे दोस्तों , मुबारक नया साल हो (नये साल पर शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:21 am with No comments

उगे , आपके जो सर पे न बाल हो
मेरे प्यारे दोस्तों , मुबारक नया साल हो

पत्नी तेरी सुन्दर हो , रेशम जैसे बाल हों
रस भरे ओंठ हो और नरम - नरम गाल हो

दुआ करूँ मैं , जो पटे तुझे माल हों
अपना निकाले काम , जी का जंजाल हो

लम्बी - चौड़ी उम्र रहे , जीवन खुशहाल हो
अवनीश की ओर से आपको , मुबारक नया साल हो

रविवार, 9 दिसंबर 2018

घुट - घुट के मर जायें | गजल | - अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:27 am with No comments

तुझे छोड़कर हम कहाँ चल जायें
तुझे छोड़कर हम कहाँ चल जायें
घुट - घुट के मर जायें
हो हो घुट - घुट के मर जायें
बोलो...
घुट - घुट के मर जायें |

वो भी क्या ज़माने थे
जब तुम मेरे साथ रहती थी
वो भी क्या ज़माने थे
जब तुम मेरे साथ रहती थी |
छोड़ेंगे न तेरा साथ
हर पल कहा करती थी
छोड़ेंगे न तेरा साथ
हर पल कहा करती थी |

अब तेरे जैसा यार कहाँ पायेंगे
अब तेरे जैसा यार कहाँ पायेंगे

घुट - घुट के मर जायें
हो हो घुट - घुट के मर जायें
बोलो...
घुट - घुट के मर जायें |

हम करें भी तो प्यार किसे करें
जिससे हुआ , बस सपनों में

तुम्हारी निगाहों से
निगाहें मिलाते थे
तुम्हारी निगाहों से
निगाहें मिलाते थे |
तेरी वीरान गलियों में
बस हम अकेले जाते थे
तेरी वीरान गलियों में
बस हम अकेले जाते थे |

अब अवनीश किस गली को जायेंगे
अब अवनीश किस गली को जायेंगे

घुट - घुट के मर जायें
हो हो घुट - घुट के मर जायें
बोलो...
घुट - घुट के मर जायें |

बची - कुची जो याद थी , वो बेहया लूट गई (टूटे दिल की कविता) - अवनीश कुमार मिश्रा मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:12 am with No comments

ऩज़रें भी थक गईं
आस भी टूट गई
बची - कुची जो याद थी
वो बेहया लूट गई
उसे मेरी निग़ाह की
परवाह तक रही नहीं
यही कहीं रही वो
पर दूर - तक दिखी नहीं
जो कभी अऱमान थे
वे टूट कर नीचे गिरे
याद व बेचैनियों से
हम सदा रहे घिरे
इस बात से अंज़ान थे
कि वो मेरी ही प्राण थी
जिसके लिए तड़पा मग़ऱ
फिर भी वो मेरी ज़ान थी
यह सोंचकर मैं गिर गया
फिर भी उठा
झट चल पड़ा
बेचैन सी लड़की
वही जो प्राण मेरा ले चुकी थी
दौड़ कर मेरे कदम से दो कदम पर रुक गई
मेरी तरफ फ़िर देखकर ऩज़ऱें झुकाकर थम गई
दिल का मारा था भला ,
फिर बोल सकता था क्या मैं
कुछ समय पश्चात वो
उसी दिशा में चल पड़ी
जिस दिशा में वो और उसकी
माँ भी थी खड़ी
उसके वहाँ से जाने से
आँखें हमारी भर गईं
आँखों में फैले आँसुओं से
से नींद मेरी खुल गई
वो ज़ान मेरी सामने थी
फिर भी न कुछ कह सका
सच में वो न ज़िन्दगी थी
सपनों में भी न रह सका
ये सोंचकर अवनीश की
आँखें शर्म से झुक गईं
फिर एक क्षण के लिए
धड़कन हमारी रुक गई

ऩज़रें भी थक गईं
आस भी टूट गई
बची - कुची जो याद थी
वो बेहया लूट गई

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      अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)

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कुछ सच्चे किन्तु कड़वे बचन - अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:02 am with No comments

सच्चाई को समझो , सच्चाई कड़वी होती है ,
चूतियों की तो बातें ही भंड़वी होती है |

    
जब सर ओखली में रख दिये तो अंज़ाम की फिकर क्या
जब वो मेरी हो न सकी तो प्यार का जिक्र क्या

वो पहले प्यार सिखाते हैं
फिर औकात दिखाते हैं

हम लगे रहे किसी को बढ़ाने में

तुम सहयोग न कर सके ,
तो लग गये गिराने में

माँ कुछ न दे क्या भगा देंगे
बूढ़ी हुई तो क्या दगा देंगे

बस यूँ ही जिन्दगी में , कुछ पड़ांव ऐसे थे ,
पता नहीं वो कैसे थे

ज़िन्दग़ी में लड़की न हो तो सब सून रहता है .....
अगर हो तो साला , ठंड में भी मई , जून रहता है ....

खोखा खाया हुआ आदमी भूल सकता है
मगर धोखा खाया हुआ आदमी कभा नहीं

शनिवार, 13 अक्तूबर 2018

हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया पागल भईल बा दुनिया रे ( भोजपुरी लोकगीत ) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:11 am with No comments

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हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे

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आज के यहि समइया में भइया
लोक - लज्जा खतम होय गा
पहले रहले सब माई औ बाबू
अब तो सब कुछ सनम होय गा - 2
लौंडे भी पहले माई रटत रहले अब तो रटेले सजनियाँ रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे

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मिनी स्कर्ट के जमाना है आइल
कपड़ा सबकै कसल होय गा
देशी केहू के मनवा न भावै
विदेशी कपड़वक नसल होय गा -2
घर परिवार कै नकवा कटावै , होय ई केहकर बबुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे

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इनही के चक्कर मा ये मोरे भइया
अवनिशवा बेचारा खराब होय गा
(सिंगर) रोवत है ये मोरे भइया
दूनौं के ज़िनगी शराब होय गा -2
अब तौ बतावा ये मोरी सजनी कैसी कटी मोर जवनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे
हो जबसे उतरल बा तन से ओढ़निया
पागल भईल बा दुनिया रे

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अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)
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सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:45 am with No comments

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मैं जिसे प्यार करता था वो किसी और से प्यार करती थी
हम जिसे दिल में रखते थे वो औरो की बाहों में रहती थी
पता नहीं क्या सोंचती थी वो हमारे बारें में ,
जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी |

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नजरें चार करने से मेरी धड़कन नहीं काबू में
ऐसा लगता है कि मुझसे प्यार करती थी
वो एकटक देखना , हँसना , शरमाना ,
लगता था कि जैसे प्यार का इकरार करती थी

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तुझसे प्यार करने की न चाहत है अब मुझमें
वो क्या वक्त थे जब आँखें सौ बार लड़ती थी
अवनीश था जब तुम्हारे प्यार में पागल ,
आँखें तुम्हारी बेवफा औरों से मिलती थी |

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जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:44 am with No comments

मैं जिसे प्यार करता था वो किसी और से प्यार करती थी
हम जिसे दिल में रखते थे वो औरो की बाहों में रहती थी
पता नहीं क्या सोंचती थी वो हमारे बारें में
जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी |

नजरें चार करने से मेरी धड़कन नहीं काबू में
ऐसा लगता है कि मुझसे प्यार करती थी
वो एकटक देखना , हँसना , शरमाना
लगता था कि जैसे प्यार का इकरार करती थी

जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:44 am with No comments

मैं जिसे प्यार करता था वो किसी और से प्यार करती थी
हम जिसे दिल में रखते थे वो औरो की बाहों में रहती थी
पता नहीं क्या सोंचती थी वो हमारे बारें में
जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी |

नजरें चार करने से मेरी धड़कन नहीं काबू में
ऐसा लगता है कि मुझसे प्यार करती थी
वो एकटक देखना , हँसना , शरमाना
लगता था कि जैसे प्यार का इकरार करती थी

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

ज़िन्दगी ने हमें इस कदर रुलाया है (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:10 am with No comments

ज़िन्दगी ने हमें इस कदर रुलाया है
जब - जब ग़म दिया तब - तब भुलाया है
ज़िन्दगी आज हमसे हुई बेवफा है
मौत के नींद में आज हमको सुलाया है |

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हम तो अकेले भी जी लेते
उसने ही हमारे दिल को उकसाया था
और आज , आज वही कहती है
कि तेरे पास कौन आया था ||

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फिर भी हम दर्द सहकर जी लेते
गर उसने हमें फिर बुलाया न होता
सारे शिकवे मिटा देते उनके लिए
अवनीश को अपने आशिक से इस कदर पिटवाया न होता ||

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

अटल रहे ये अटल हमारा , दुश्मन सारे नंगा हों (कविता) अटल जी को श्रद्धांजलि के स्वरूप उनको समर्पित Avaneesh Kumar mishra

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:41 am with No comments

अटल रहे ये अटल हमारा , दुश्मन सारे नंगा हों
जनगण मन अधिनायक जय और विजयी विश्व तिरंगा हो

सदियों - सदियों तक याद रहेंगे
जन - जन की पहचान रहेगें
अब नहीं रहे तो सब सूना है
रो - रोकर सब लोग कहेंगे
वो ही थे विश्वास हमारे , अब कौन हमारे संगा हो

अटल रहे ये अटल हमारा , दुश्मन सारे नंगा हों

ये क्षति नहीं , बस राजनीति की
वे भारत माँ के भक्ता थे
वे पत्रकार एवं कविवर थे
वे एक कुशल वक्ता भी थे
अवनीश कहे कि अटल - अटल हृदय हमारा रंगा हो

अटल रहे ये अटल हमारा , दुश्मन सारे नंगा हों

शनिवार, 7 जुलाई 2018

तेरे ओठों की मुस्कान याद आती है (ग़ज़ल) - Avaneesh kumar mishra (writer, poet)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 8:00 am with No comments

तू जो कहती थी तेरी बात याद आती है
तेरे ओठों की मुस्कान याद आती है

तू जो कहती थी कि तू क्यूट बहुत है
तेरे मुख की वो जुबान याद आती है
तेरे ओठों की मुस्कान याद आती है

तू जो कहती थी तुमसे प्यार बहुत है
तेरे दिल की वो आवाज याद आती है
तेरे ओठों की मुस्कान याद आती है

तू जो कहती थी तुझे छोड़ के न जायेंगें
तेरे दिल में क्या अवनीश की याद आती हैं
तेरे ओठों की मुस्कान याद आती है

बुधवार, 20 जून 2018

दिल जला तो आँसू निकल आयेंगे (शायरी) - Avaneesh kumar mishra (writer,poet)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 8:54 am with No comments

मुझे अपनी जिन्दगी से दूर कर दो
पर इतना मत दूर कर दो कि हमारी जिन्दगी यूँ ही सुनसान गुजर जाये 
अपने दिल से हमें दूर कर दो
पर इतना मत दूर कर दो कि दिल टूटकर बिखर जाये

हमारी जिन्दगी यूँ ही सुनसान कर दो तुम
दिल में हमारे आग लग जायेगी
हमारे दिल के आगों से
तुम्हारा प्यार दिल से जल जायेगी

दिल जला तो आँसू निकल आयेंगे
तेरे दिल में खुशी खूब भर जायेगी
किसीे और से दिल लगा लेगी तुम
अवनीश को याद फिर आयेगी

गुरुवार, 7 जून 2018

जिन्दगी में जिसने हमें हँसना सिखाया था(शायरी)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 12:54 am with No comments

उसके चरणों की आहट ने हमें बेकरार कर डाला
सारा जीवन ही उसके लिए हमने बर्बाद कर डाला
वो आयी जिन्दगी में तो सपने खूब देखें हम
हमारी चाहतों का उसी ने खून कर डाला

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चाहतें थी जुदाई की मगर हम बेखबर ही थे
धार ऐसी थी कि इश्क से महरूम कर डाला
हमारी झुकी निगाहों पे भी उसको शर्म न आयी
हँसी भरी जिन्दगी को उसने सून कर डाला 

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जिन्दगी में जिसने हमें हँसना सिखाया था
बेवफा ने उसी से हमको दूर कर डाला
बस नफरत ही भरी थी दिल में उसके
अवनीश के चाहने वालों का भी उसने खून कर डाला

मंगलवार, 5 जून 2018

काहे नाही मोरे सजनवा बम्बई से कबहू आवैं हो

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 5:13 am with No comments

कशमकश करा ता हमरो जवनिया
कोई न टाँका भिड़ावै हो -2
काहे नाही मोरे सजनवा
काहे नाही मोरे सजनवा बम्बई से कबहू आवैं हो -2

जब से तू गईला तबसे न अईला
तड़पेली मोर जवानी हो
रोजे देखेली तोहरे सपनवा
भईल जवानी मोर पानी हो -2
तोहरे वियोग में ऐ हो बलमुआ कुछू न हमका भावै हो
काहे नाही मोरे सजनवा
काहे नाही मोरे सजनवा बम्बई से कबहू आवैं हो -2

तोहरे यदवा में ऐ मोरे राजा
नीक न लागे खनवा हो
अब तो चले आवा ये मोरे रजऊ
ले लेबा का पिया जनवा हो -2
भूखे - प्यासे मा भइली हम आधा कोई दवाई न लावै हो
काहे नाही मोरे सजनवा
काहे नाही मोरे सजनवा बम्बई से कबहू आवैं हो -2

राइटर अवनीश से कैसे कही
राजा के हमरे बुलाला हो
कहे - - - कि हमरा के अब
कुछू नाही बुझाला हो -2
तोहरा गईला के बाद ये रजऊ देवरा बहुत सतावै हो
काहे नाही मोरे सजनवा
काहे नाही मोरे सजनवा बम्बई से कबहू आवैं हो -2


गीतकार - अवनीश कुमार मिश्रा

मंगलवार, 22 मई 2018

चप्पल खाने के बाद भी खड़े रहते हैं (हास्य शायरी) अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 2:39 am with No comments

कोई जुल्फों से दिल को लुभाती है
कोई आँखों से गोली चलाती है
बराबर खर्च चलता रहे
इसलिए लड़कियाँ लड़कों को फंसाती हैं

हम तो कुत्ता हुए इनके प्यार में
इक चुम्मा था माँगा उधार में
वो धीरे से मेरे पास आयी
और और क्या इक चाँटा लगा दिया गाल में

दिल लगायें तो साला टूट जाता है
शरीर बेचारा लूट जाता है
बड़ा टेन्शन है इश्क में यारों
फंसे तो आशिक बेचारा कूट जाता है

पता नहीं क्यों लोग इश्क में पड़े रहते हैं
दिल टूटता है तो मयखाने में पड़े रहते हैं
अवनीश तो दिलवाले हैं यारों
चप्पल खाने के बाद भी खड़े रहते हैं

शनिवार, 19 मई 2018

हम अंजान थे नजरों से उनके (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 12:42 am with No comments

हम अंजान थे नजरों से उनके  
उनकी नजरें हमें गिराना चाहती थीं
जिन्हें समझा था कि गिरेंगे तो उठायेंगें
वही ताकते हमें मिटाना चाहती थीं

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हम सम्भले तो वे मात खा गये
जिन्होंने हमें गिराने का ख्वाब देखा था
हम संभले तो उनका गुरूर टूटा
जिन्होंने हमें मिटाने का ख्वाब देखा था

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हमसफर बनकर रह सकते थे मगर
उन्हें खुद पर बड़ा गुरूर था
वे अवनीश को नहीं चाहती थी तो
इसमें उनका क्या कुसूर था

सोमवार, 7 मई 2018

आँखें ही आँखों से दूर हो गई (शायरी)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:44 pm with No comments

आँखें भरी हमारी थी
वो खूब हँस रहे थे
बेशर्म है बेचारा
कह तंज कस रहे थे
यकीन न था वो वो ही थी
जिसके लिए ये नयन बह रहे थे

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जिनके लिए जिया था
वो दूर हो गई
मेरी लाचार आँखें
मजबूर हो गई
कभी आँखों से बातें हुआ करती थी
आज आँखें ही आँखों से दूर हो गई

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टूटकर बिखर गई
ख्वाब जो हमारे थे
आँसू भी बिखर गई
जिसे प्यार से संभाले थे
ये अवनीश थे जो संभल गये
अच्छे - अच्छे ठेके के सहारे थे

शनिवार, 7 अप्रैल 2018

जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम (गज़ल) अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:15 am with No comments

बाजी जीत कर भी बाजी हार जाना तुम
जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम
हमें दिल से लगाना न सही
दिल से दो -चार थप्पड़ मार देना तुम

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जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम
जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम

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बाग - बगीचे में हर जगह याद आती तुम
बचपन की यादों में भी याद आती तुम
पल - पल मर रहा हूँ तेरी याद में
अवनीश के धड़कनों में भी याद आती तुम

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जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम
जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

तेरी जुल्फों में जो फूल है सनम् (शायरी)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 1:58 pm with No comments

तेरी जुल्फों में जो फूल है सनम्
मेरी देंह में जो खून है सनम्
पता नहीं क्यों मेरा खून
तेरे फूल की ओर दौड़ता है
हमें लगता है कि ये मेरी भूल है सनम्

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जो मेरा मन तुमपे मरता है
देखकर लोगों का दिल जलता है
दिलों के जलने से मेरा मन
तेरे पर और लगता है
हम नहीं मरते आपके लिए ,ये मन मेरा मचलता है

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बेवफाई किया मन ने तेरी तरह
अपने मन को कैसे समझायें हम
याद आती नजर में नजर ही तुम्हीं
मन को अपने कैसे बहलायें हम

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मेरा मन मेरा न रहा अपने मन का करता है
जो प्यार से देखले उसका ही नाम जपता है
उसे क्या पता मोहब्बत
क्या चीज है
अवनीश जानता है कि कितना दर्द होता है

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

आशिक को सब कुछ लुटाना पड़ा(शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 10:21 am with No comments

किसी को आसूँ बहाना पड़ा
किसी को जान गंवाना पड़ा
मत करना प्यार भाईयो
सबको प्यार की कीमत चुकाना पड़ा

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ये जो दुनिया है बड़ी जालिम है
आशिक को सब कुछ लुटाना पड़ा
हीर रांझां तो बस कुछ नाम हैं
लाखों को गर्दन कटाना पड़ा

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इश्क क्या ये तो बहुतो ने किया
चन्द लोगों को उसको निभाना पड़ा
बस प्यार से जिन्दगी कटती नहीं
टुकड़ों के लिए कमाना पड़ा

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अवनीश कुमार मिश्रा को भी इश्क हुआ
इश्क में फर्ज निभाना पड़ा
जिसको चाहा वो बेवफा निकली
फिर बीती बातों को भुलाना पड़ा |

सोमवार, 19 मार्च 2018

गज़ब की आग है (रोमांटिक शायरी)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 10:15 am with No comments

गज़ब की आग है यारों कसम उनकी जवानी में ,
कोई तो राज है यारों कसम उनकी जवानी में |
वो आकर पास में कहती ऐ जान,
आग में जल भी जाते हम कसम उनकी जवानी में ||

रविवार, 4 मार्च 2018

क्या पता था इश्क में ठोकरें खायेंगे(गजल)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:47 am with No comments

क्या पता था इश्क में ठोकरें खायेंगे
इस तरह से मोहब्बत की सजा पायेंगे - 2

वो तो चली गयी हमें छोड़कर ,||
दो शब्द प्यार के तरस जायेंगे ||

क्या पता था इश्क में ठोकरें खायेंगे
इस तरह से मोहब्बत की सजा पायेंगे -2

मतलबों की दुनिया है पता चल गया ,||
चार दिन में सब जन गुजर जायेंगे ||

क्या पता था इश्क में ठोकरें खायेंगे
इस तरह से मोहब्बत की सजा पायेंगे -2

वो सुहाने जमाने गुजर ही गयें ,||
फूल राहों में मेरे न खिल पायेंगे ||

क्या पता था इश्क में ठोकरें खायेंगे
इस तरह से मोहब्बत की सजा पायेंगे -2

अवनीश कोशिश करे की भुुलाये उसे ,||
याद में उसके आँसू निकल जायेंगे ||

क्या पता था इश्क में ठोकरें खायेंगे
इस तरह से मोहब्बत की सजा पायेंगे -2

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

तेरे इश्क का वो सनम आया है (गजल)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:29 pm with No comments

तेरे इश्क का वो सनम आया है
देखते देखते दिन गुजर आया है -2

जिन्दगी की ये मोती बिखरनी न थी ,||
चोट ऐसी लगी कि बिखर आया है ||

तेरे इश्क का वो सनम आया है
देखते देखते दिन गुजर आया है -2

आग इतना लगाके बदन में मेरे ,||
किसी और पर दिल तेरा आया है ||

तेरे इश्क का वो सनम आया है
देखते देखते दिन गुजर आया है -2

अपनी तिरछी नजरिया से घायल किया ||
दिल मेरा ये तभी से सिहर आया है ||

तेरे इश्क का वो सनम आया है
देखते देखते दिन गुजर आया है -2

अपनी सुन्दर सुरतिया से मुस्कायी वो ||
अवनीश कुमार मिश्रा का तब से ये दिल आया है ||

तेरे इश्क का वो सनम आया है
देखते देखते दिन गुजर आया है -2

नोट - यह गजल अवनीश कुमार मिश्रा यानि हमारे द्वारा लिखी गयी है इस गजल में अगर आप आवाज देना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हमसे अधिकार की जरूरत होगी
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