रविवार, 9 दिसंबर 2018

बची - कुची जो याद थी , वो बेहया लूट गई (टूटे दिल की कविता) - अवनीश कुमार मिश्रा मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:12 am with No comments

ऩज़रें भी थक गईं
आस भी टूट गई
बची - कुची जो याद थी
वो बेहया लूट गई
उसे मेरी निग़ाह की
परवाह तक रही नहीं
यही कहीं रही वो
पर दूर - तक दिखी नहीं
जो कभी अऱमान थे
वे टूट कर नीचे गिरे
याद व बेचैनियों से
हम सदा रहे घिरे
इस बात से अंज़ान थे
कि वो मेरी ही प्राण थी
जिसके लिए तड़पा मग़ऱ
फिर भी वो मेरी ज़ान थी
यह सोंचकर मैं गिर गया
फिर भी उठा
झट चल पड़ा
बेचैन सी लड़की
वही जो प्राण मेरा ले चुकी थी
दौड़ कर मेरे कदम से दो कदम पर रुक गई
मेरी तरफ फ़िर देखकर ऩज़ऱें झुकाकर थम गई
दिल का मारा था भला ,
फिर बोल सकता था क्या मैं
कुछ समय पश्चात वो
उसी दिशा में चल पड़ी
जिस दिशा में वो और उसकी
माँ भी थी खड़ी
उसके वहाँ से जाने से
आँखें हमारी भर गईं
आँखों में फैले आँसुओं से
से नींद मेरी खुल गई
वो ज़ान मेरी सामने थी
फिर भी न कुछ कह सका
सच में वो न ज़िन्दगी थी
सपनों में भी न रह सका
ये सोंचकर अवनीश की
आँखें शर्म से झुक गईं
फिर एक क्षण के लिए
धड़कन हमारी रुक गई

ऩज़रें भी थक गईं
आस भी टूट गई
बची - कुची जो याद थी
वो बेहया लूट गई

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