रविवार, 9 दिसंबर 2018

कुछ सच्चे किन्तु कड़वे बचन - अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:02 am with No comments

सच्चाई को समझो , सच्चाई कड़वी होती है ,
चूतियों की तो बातें ही भंड़वी होती है |

    
जब सर ओखली में रख दिये तो अंज़ाम की फिकर क्या
जब वो मेरी हो न सकी तो प्यार का जिक्र क्या

वो पहले प्यार सिखाते हैं
फिर औकात दिखाते हैं

हम लगे रहे किसी को बढ़ाने में

तुम सहयोग न कर सके ,
तो लग गये गिराने में

माँ कुछ न दे क्या भगा देंगे
बूढ़ी हुई तो क्या दगा देंगे

बस यूँ ही जिन्दगी में , कुछ पड़ांव ऐसे थे ,
पता नहीं वो कैसे थे

ज़िन्दग़ी में लड़की न हो तो सब सून रहता है .....
अगर हो तो साला , ठंड में भी मई , जून रहता है ....

खोखा खाया हुआ आदमी भूल सकता है
मगर धोखा खाया हुआ आदमी कभा नहीं

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