शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

Ghazal - ज़माने भर के दुश्मन हमदर्दियां जताने लगे गले लगाया भी तो छूरिया चलाने लगे | Avaneesh Kumar Mishra

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 10:29 am with No comments
ज़माने भर के दुश्मन हमदर्दियां जताने लगे
गले लगाया भी तो छूरिया चलाने लगे

जिनको हमने बचपन में चलना सिखाया था
हम ठोकर क्या खाए , चलना सिखाने लगे

गड्ढे खोदने की औकात नहीं है जिनकी इस जहां में
वो कम्बख़्त भी दरिया बनाने लगे

अच्छे दिनों में जो ऊंचे ख़्वाब दिखाते थे
दिन गिरे मेरे तो कमियां गिनाने लगे

उनके ऊंचे अल्फ़ाज़ से परिंद तक हिले नहीं
मैंने जुबां खोल दी सब उत्पात मचाने लगे
 
अब क्या बताएं की किस तरह से तन्हा हैं हम
जिन लोगों से लिपटते थे वे लोग ही सताने लगे

हम जिसे अपना समझकर खूब इतराते रहे
वो हमारे दरमियां की दूरियां बताने लगे

मां की गोद में महफूज़ हूं तुम फ़िक्र मत करना
ज़िक़्र किया उनसे तो वे प्यार जताने लगे

मेरी मौत हुई, मय्यत उठी, जनाजा निकला
वे जो अज़ीज़ थे, मेरे जिस्म को जलाने लगे

तुम्हारी नवाबी का क्या ख़ौफ है "अवनीश"
तुम चले तो जलने वाले भी कुर्सियां हटाने लगे

New Ghazal Lyrics - मैं वो सांप हूं इक वीरान जंगल का किसी को काट लूं तो लहर ना आए । Avaneesh Kumar Mishra

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 10:27 am with No comments
मजबूत इतना बनो की कहर ना आए
तिरपटा चलो कहीं शहर ना आए

मैं वो सांप हूं इक वीरान जंगल का
किसी को काट लूं तो लहर ना आए

तू ही मेरे हर इक मर्ज की दवा है
तू जो घुले तो मुझमें ज़हर ना आए

कर्म इतने अच्छे किए हैं हमने जीवन में
सीधे चलो कहीं बहर ना आए

तेरी जिंदगी तो दरिया है दरिया
सम्भल कर चलो कहीं नहर ना आए

इस क़दर हम तुम समा जाएं इक दूजे में
ज़माना दिया जलाकर देखे तो भी नज़र ना आए

हिम का अंश हो तुम मैं अवगुणों का नाश करता हूं