मजबूत इतना बनो की कहर ना आए
तिरपटा चलो कहीं शहर ना आए
मैं वो सांप हूं इक वीरान जंगल का
किसी को काट लूं तो लहर ना आए
तू ही मेरे हर इक मर्ज की दवा है
तू जो घुले तो मुझमें ज़हर ना आए
कर्म इतने अच्छे किए हैं हमने जीवन में
सीधे चलो कहीं बहर ना आए
तेरी जिंदगी तो दरिया है दरिया
सम्भल कर चलो कहीं नहर ना आए
इस क़दर हम तुम समा जाएं इक दूजे में
ज़माना दिया जलाकर देखे तो भी नज़र ना आए
हिम का अंश हो तुम मैं अवगुणों का नाश करता हूं
तिरपटा चलो कहीं शहर ना आए
मैं वो सांप हूं इक वीरान जंगल का
किसी को काट लूं तो लहर ना आए
तू ही मेरे हर इक मर्ज की दवा है
तू जो घुले तो मुझमें ज़हर ना आए
कर्म इतने अच्छे किए हैं हमने जीवन में
सीधे चलो कहीं बहर ना आए
तेरी जिंदगी तो दरिया है दरिया
सम्भल कर चलो कहीं नहर ना आए
इस क़दर हम तुम समा जाएं इक दूजे में
ज़माना दिया जलाकर देखे तो भी नज़र ना आए
हिम का अंश हो तुम मैं अवगुणों का नाश करता हूं
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