दिल की बात थी साहब , हवस तक नहीं
ज़िंदगी भर का वादा था , डगर तक नहीं
जाते - जाते उसे समझाया था मैंने
साथ निभाऊंगा तेरा अधूरे सफ़र तक नहीं
जो करना चाहता है सच्ची मोहब्बत किसी से
उसके पास इक हमसफ़र तक नहीं
इधर - उधर भटकती हैं आत्माएं हसीनाओं की
मैं भी जवां हूं किसी को ख़बर तक नहीं
मैंने मुस्कुराके इक हसीना से बात क्या कर ली
मेरे घर वालों को सबर तक नहीं
वे लोग हमें मिटाना चाहते थे उनके दिल से
खंजर छोड़िए जनाब , उनके पास रबर तक नहीं
कहने को आवारा कुत्ते भी ज़िन्दगी जीते हैं
इज्ज़त से जीना है , बसर तक नहीं
उसके बालों के ख़ुशबू में मशगूल था
ऐसा खंजर घुसाया , कहर तक नहीं
जाने कितने बवंडर झेले हैं हमने आशिक़ी में
बहलाया दिल को , खाया ज़हर तक नहीं
अवनीश किसी और के नहीं हुए , परेशां क्यूं हो
हर बख़त याद करते हैं , कुछ पहर तक नहीं