शनिवार, 7 अप्रैल 2018

जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम (गज़ल) अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:15 am with No comments

बाजी जीत कर भी बाजी हार जाना तुम
जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम
हमें दिल से लगाना न सही
दिल से दो -चार थप्पड़ मार देना तुम

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जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम
जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम

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बाग - बगीचे में हर जगह याद आती तुम
बचपन की यादों में भी याद आती तुम
पल - पल मर रहा हूँ तेरी याद में
अवनीश के धड़कनों में भी याद आती तुम

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जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम
जो दिल से आह निकले तो हमें सम्भाल लेना तुम

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

तेरी जुल्फों में जो फूल है सनम् (शायरी)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 1:58 pm with No comments

तेरी जुल्फों में जो फूल है सनम्
मेरी देंह में जो खून है सनम्
पता नहीं क्यों मेरा खून
तेरे फूल की ओर दौड़ता है
हमें लगता है कि ये मेरी भूल है सनम्

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जो मेरा मन तुमपे मरता है
देखकर लोगों का दिल जलता है
दिलों के जलने से मेरा मन
तेरे पर और लगता है
हम नहीं मरते आपके लिए ,ये मन मेरा मचलता है

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बेवफाई किया मन ने तेरी तरह
अपने मन को कैसे समझायें हम
याद आती नजर में नजर ही तुम्हीं
मन को अपने कैसे बहलायें हम

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मेरा मन मेरा न रहा अपने मन का करता है
जो प्यार से देखले उसका ही नाम जपता है
उसे क्या पता मोहब्बत
क्या चीज है
अवनीश जानता है कि कितना दर्द होता है