मोहब्बत कर रहां हूं, थोड़ा और करने दो
सर्दी की अंधेरी रात में भी आपको, चाहत हमारी खींच लाई है
आके गले मिलो, शीत पड़ रही है तो पड़ने दो
कितना ख़ुदग़र्ज़ हो गया है ये जमाना, जेहन में ये है कि
किसी का घर उजड़ता है तो उजड़ने दो
कोई किसी का अपना नहीं है इस जहां में
लोग बिछड़ना चाहते हैं, तो बिछड़ने दो
अगर है हौंसला तो जहां को घूम लेंगे हम
जलने वाले पर कुतरते हैं, तो कुतरने दो
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