समझ से बाहर हो ऐसा राज़ बनो
हर कोई दीवाना हो जाए ऐसा साज़ बनो
जब तलक धरती रहे हमारे मोहब्बत की दुहाई दे ज़माना
मैं शाहजहां बनूं, तुम मेरी मुमताज़ बनो
सियासत तो अमीरों के कोठे की तवायफ़ है
अहल-ए-सियासत हो तो मुफ़लिसों की आवाज़ बनो
यूं तो उजाला दिये भी देते हैं मगर
सारा जहां रौशन हो वो आफ़ताब बनो
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