मंगलवार, 5 जनवरी 2021

Ghazal - समझ से बाहर हो ऐसा राज़ बनो । अवनीश कुमार मिश्रा 'मोहब्बत' । Avaneesh Ki Ghazal, Shayari

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:49 am with No comments
समझ से बाहर हो ऐसा राज़ बनो
हर कोई दीवाना हो जाए ऐसा साज़ बनो

जब तलक धरती रहे हमारे मोहब्बत की दुहाई दे ज़माना
मैं शाहजहां बनूं, तुम मेरी मुमताज़ बनो

सियासत तो अमीरों के कोठे की तवायफ़ है
अहल-ए-सियासत हो तो मुफ़लिसों की आवाज़ बनो

यूं तो उजाला दिये भी देते हैं मगर
सारा जहां रौशन हो वो आफ़ताब बनो



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