मेरी चाहत में क्या कमी हो सकती है? ऐसा कौन सा गुनाह है ए मेरे कुदरत!, मैने तेरा क्या बिगाड़ा है? मेरे सारे गुनाह मुआफ कर दे, ए मेरे कुदरत मुझे तुझसे यही गुज़ारिश है। मेरा क़ासिद बनकर तू मेरी महबूबा को ख़बर दे दे की तेरा दीवाना अब हद से गुज़र चुका है। उसकी मुराद पूरी कर दे। इक बार अपना दीदार करा दो फ़िर उसकी जां ले लेना।
मैं हर इक दिन आगे बढ़ ही रहा हूं, अगर नए साल में हमें कुछ मिले तो सिर्फ़ वो मिले और कुछ भी न मिले। न दुःख मिले, न दर्द, न तन्हाई मिले, न रुसवाई।
बहुत तोहमतें मिली है हमें मोहब्बत में
अगर तू भी न मिलेगी तो मर जाऊंगा
कहने को तो बहुत है......
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