सोमवार, 31 दिसंबर 2018

कुछ ऐसे जी रहा हूँ , जैसे राधा बिन श्याम हैं (दर्द भरी शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा लेखक , कवि

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:28 am with No comments
काहे की खुशी जब हमारी जिंदगी ही गुमनाम है , कुछ ऐसे जी रहा हूँ , जैसे राधा बिन श्याम हैं | न हम प्रेम की गलियों में बदनाम हैं न राधा और श्याम हैं , हम तो इक सताये हुए हैं , हमारा तो प्यार भी गुमनाम है | पता नहीं वो डरती थी या मैं डरता था वो प्यार करती थी या नहीं, पर अवनीश प्यार करता था |...

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

उगे , आपके जो सर पे न बाल हो , मेरे प्यारे दोस्तों , मुबारक नया साल हो (नये साल पर शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 6:21 am with No comments
उगे , आपके जो सर पे न बाल हो मेरे प्यारे दोस्तों , मुबारक नया साल हो पत्नी तेरी सुन्दर हो , रेशम जैसे बाल हों रस भरे ओंठ हो और नरम - नरम गाल हो दुआ करूँ मैं , जो पटे तुझे माल हों अपना निकाले काम , जी का जंजाल हो लम्बी - चौड़ी उम्र रहे , जीवन खुशहाल हो अवनीश की ओर से आपको , मुबारक नया साल हो...

रविवार, 9 दिसंबर 2018

घुट - घुट के मर जायें | गजल | - अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:27 am with No comments
तुझे छोड़कर हम कहाँ चल जायें तुझे छोड़कर हम कहाँ चल जायें घुट - घुट के मर जायें हो हो घुट - घुट के मर जायें बोलो... घुट - घुट के मर जायें | वो भी क्या ज़माने थे जब तुम मेरे साथ रहती थी वो भी क्या ज़माने थे जब तुम मेरे साथ रहती थी | छोड़ेंगे न तेरा साथ हर पल कहा करती थी छोड़ेंगे न तेरा साथ हर पल कहा करती थी | अब तेरे जैसा यार कहाँ पायेंगे अब तेरे जैसा यार कहाँ पायेंगे घुट - घुट के मर जायें...

बची - कुची जो याद थी , वो बेहया लूट गई (टूटे दिल की कविता) - अवनीश कुमार मिश्रा मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:12 am with No comments
ऩज़रें भी थक गईं आस भी टूट गई बची - कुची जो याद थी वो बेहया लूट गई उसे मेरी निग़ाह की परवाह तक रही नहीं यही कहीं रही वो पर दूर - तक दिखी नहीं जो कभी अऱमान थे वे टूट कर नीचे गिरे याद व बेचैनियों से हम सदा रहे घिरे इस बात से अंज़ान थे कि वो मेरी ही प्राण थी जिसके लिए तड़पा मग़ऱ फिर भी वो मेरी ज़ान थी यह सोंचकर मैं गिर गया फिर भी उठा झट चल पड़ा बेचैन सी लड़की वही जो प्राण मेरा ले...

कुछ सच्चे किन्तु कड़वे बचन - अवनीश कुमार मिश्रा (लेखक , कवि)

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 9:02 am with No comments
सच्चाई को समझो , सच्चाई कड़वी होती है , चूतियों की तो बातें ही भंड़वी होती है |      जब सर ओखली में रख दिये तो अंज़ाम की फिकर क्या जब वो मेरी हो न सकी तो प्यार का जिक्र क्या वो पहले प्यार सिखाते हैं फिर औकात दिखाते हैं हम लगे रहे किसी को बढ़ाने में तुम सहयोग न कर सके , तो लग गये गिराने में माँ कुछ न दे क्या भगा देंगे बूढ़ी हुई तो क्या दगा देंगे बस यूँ ही जिन्दगी में ,...