सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:44 am with No comments

मैं जिसे प्यार करता था वो किसी और से प्यार करती थी
हम जिसे दिल में रखते थे वो औरो की बाहों में रहती थी
पता नहीं क्या सोंचती थी वो हमारे बारें में
जहाँ भी मिलती नजरें चार करती थी |

नजरें चार करने से मेरी धड़कन नहीं काबू में
ऐसा लगता है कि मुझसे प्यार करती थी
वो एकटक देखना , हँसना , शरमाना
लगता था कि जैसे प्यार का इकरार करती थी

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