ज़माने भर के दुश्मन हमदर्दियां जताने लगेगले लगाया भी तो छूरिया चलाने लगेजिनको हमने बचपन में चलना सिखाया थाहम ठोकर क्या खाए , चलना सिखाने लगेगड्ढे खोदने की औकात नहीं है जिनकी इस जहां मेंवो कम्बख़्त भी दरिया बनाने लगेअच्छे दिनों में जो ऊंचे ख़्वाब दिखाते थेदिन गिरे मेरे तो कमियां गिनाने लगेउनके ऊंचे अल्फ़ाज़ से परिंद तक हिले नहींमैंने जुबां खोल दी सब उत्पात मचाने लगे अब क्या बताएं की किस तरह से...
शुक्रवार, 31 जुलाई 2020
New Ghazal Lyrics - मैं वो सांप हूं इक वीरान जंगल का किसी को काट लूं तो लहर ना आए । Avaneesh Kumar Mishra
Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 10:27 am with No comments
मजबूत इतना बनो की कहर ना आए
तिरपटा चलो कहीं शहर ना आए
मैं वो सांप हूं इक वीरान जंगल का
किसी को काट लूं तो लहर ना आए
तू ही मेरे हर इक मर्ज की दवा है
तू जो घुले तो मुझमें ज़हर ना आए
कर्म इतने अच्छे किए हैं हमने जीवन में
सीधे चलो कहीं बहर ना आए
तेरी जिंदगी तो दरिया है दरिया
सम्भल कर चलो कहीं नहर ना आए
इस क़दर हम तुम समा जाएं इक दूजे में
ज़माना दिया जलाकर देखे तो भी नज़र ना आए
हिम का अंश हो तुम...
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