बुधवार, 13 दिसंबर 2017

हम चले थे मोहब्बत बाँटने (शायरी) "दर्दीला इश्क" पुस्तक

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 5:54 pm with No comments
हम चले थे मोहब्बत बाँटने
कुछ बाँटा और कुछ बाँटते ही रहे |
जब आयी बारी अपनी मोहब्बत पाने की
हम अपने सनम को ताकते ही रहे ||
आँखों से आँखें मिली जब कभी ,
डांटती रही वो हम डांट खाते रहे |||
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