शनिवार, 7 अगस्त 2021

बगावत करते - करते नज़्म । अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 7:06 am with No comments
जब मैं अकेला होता हूं तो सोचता हूं की कितनी नफ़रत हो गई है खुद से, किसी से बेपनाह मोहब्बत करते - करते दीवाना बनाकर गया वो शख्स मुझेथक गया हूं मैं बगावत करते - करते उसकी मज़बूरी थी या मर्ज़ीबिछड़कर तबाह मैं ही हुआ हूंमेरे अश्कों की कीमत कोहिनूर जितनीटके के भाव भी कदर न की उसनेअय्याशों के मोहब्बत मुकम्मल हो गएआशिक! गुमराह मैं ही हुआ हूंतुम्हारी जुदाई में अगर मैं मर जाऊंतो ये अपनी...