शनिवार, 19 मई 2018

हम अंजान थे नजरों से उनके (शायरी) - अवनीश कुमार मिश्रा

Posted by अवनीश कुमार मिश्रा on 12:42 am with No comments

हम अंजान थे नजरों से उनके  
उनकी नजरें हमें गिराना चाहती थीं
जिन्हें समझा था कि गिरेंगे तो उठायेंगें
वही ताकते हमें मिटाना चाहती थीं

×××××××××××××××××××××××××××××××

हम सम्भले तो वे मात खा गये
जिन्होंने हमें गिराने का ख्वाब देखा था
हम संभले तो उनका गुरूर टूटा
जिन्होंने हमें मिटाने का ख्वाब देखा था

×××××××××××××××××××××××××××××××

हमसफर बनकर रह सकते थे मगर
उन्हें खुद पर बड़ा गुरूर था
वे अवनीश को नहीं चाहती थी तो
इसमें उनका क्या कुसूर था

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें